अमेरिका की ताज़ा मानवाधिकार रिपोर्ट में मणिपुर और कश्मीर का ज़िक्र, भारत ने रिपोर्ट को किया ख़ारिज

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल

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भारत सरकार ने गुरुवार को अमेरिकी विदेश विभाग की उस रिपोर्ट को ख़ारिज किया है, जिसमें मणिपुर हिंसा के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात कही गई थी.

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पत्रकारों से कहा, "ये रिपोर्ट पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है और भारत की स्थिति को ठीक से नहीं समझती. हम इसे कोई अहमियत नहीं देते हैं और आपसे भी गुज़ारिश करते हैं कि आप भी यही करें."

बीते दिनों अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अलग-अलग देशों में मानवाधिकारों से जुड़े क़ानूनों के पालन की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी.

रिपोर्ट में भारत से जुड़े कई मामलों का ज़िक्र विस्तार से किया गया था. साथ ही ये भी कहा गया कि भारत में तानाशाही बढ़ी है.

इसके बाद अब एक अमेरिकी सरकार के आला अधिकारी ने कहा था कि लोकतंत्र और मानवाधिकारों के मुद्दे पर अमेरिका और भारत की बातचीत होती रहती है.

अमेरिकी ब्यूरो ऑफ़ डेमोक्रेसी ह्यूमन राइट्स एंड लेबर के वरिष्ठ अधिकारी रॉबर्ट एस गिलक्रिस्ट ने मंगलवार को कहा, "लोकतंत्र और मानवाधिकारों के मामले में भारत और अमेरिका के बीच उच्चतम स्तर पर बातचीत होती रहती है. हम भारत से गुज़ारिश करेंगे कि वो मानवाधिकारों से जुड़ी अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करे."

गिलक्रिस्ट ने कहा कि वो भारत सरकार से गुज़ारिश करेंगे कि सिविल सोसायटी के लोगों से बात मुलाक़ात करते रहें

भारत ने इस रिपोर्ट के बारे में फ़िलहाल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है. विदेश मंत्रालय या सरकार की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया आएगी तो उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

लेकिन अतीत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को भारत सरकार ख़ारिज करती रही है.

इससे पहले सोमवार को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मानव अधिकारों से जुड़े क़ानूनों पर अमल को लेकर एक कंट्री रिपोर्ट (2023 ह्यूमन राइट्स रिपोर्ट) जारी की थी. इस रिपोर्ट को ब्यूरो ऑफ़ डेमोक्रेसी ह्यूमन राइट्स एंड लेबर ने लिखा है.

रिपोर्ट जारी करते हुए ब्लिंकन ने कहा था कि इसमें क़रीब 200 मुल्कों के मानवाधिकारों की स्थिति के सच जानकारी दी गई है.

रिपोर्ट में क्या लिखा है

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रिपोर्ट में चीन, ब्राज़ील , बेलारूस, म्यांमार के साथ-साथ भारत का भी ज़िक्र है.

जहां चीन में वीगर अल्पसंख्यक समुदायों के साथ हो रहे उत्पीड़न, म्यांमार में रोहिंग्या अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ हो रहे अपराध और उनके पलायन, निकारागुआ में एक्टिविस्टों पर दबाव डालने और उन्हें देश से निकालने के मामलों, सूडान में सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्सेज़ के किए युद्ध अपराधों के बारे में लिखा गया है.

इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं से शिक्षा का अधिकार छीनने, युगांडा के समलैंगिकता विरोधी क़ानून पास करने और एलजीबीटीवक्यूआई प्लस समुदाय से जुड़े लोगों के लिए क़ैद, यहं तक कि मौत की सज़ा का प्रावधान करने, ईरान मे मोरलिटी पुलिस के पकड़ने के बाद महिसा अमीनी की मौत और उसके बाद हुए विरोध प्रदर्शनों, इसराइल पर हमास के लड़ाकों के हमले के बारे में लिखा गया है.

रिपोर्ट में भारत से जुड़े कई मामलों की ज़िक्र भी विस्तार से किया गया है. साथ ही ये भी कहा गया है कि भारत में तानाशाही बढ़ी है.

रिपोर्ट के अनुसार, "इस बीच चीनी सरकार के दमनकारी लक्ष्यों को लेकर परेशानी बढ़ी है और ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और अमेरिका ने भारत के साथ व्यापार और सुरक्षा संबंध बढ़ाए हैं जो दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र है."

रिपोर्ट में लिखा है, "लेकिन भारत में मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने चीन की सरकार के कई ऐसे दमनकारी तौर-तरीकों को अपनाया है. इनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ सुनियोजित तरीके से भेदभाव करना, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों का गला घोंटना और अभिव्यक्ति की आज़ादी को ख़त्म करने और सत्ता पर अपनी पकड़ बढ़ाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल शामिल है."

नई दिल्ली के जंतर मंतर में कुकी छात्रों का प्रदर्शन

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भारत के बारे में रिपोर्ट में क्या है?

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों और दूसरे अल्पसंख्यकों, ख़ासकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ सुनिय़ोजित तराकी के भेदभाव जारी रखा. बीजेपी का समर्थन करने वालों ने निश्चित समूहों के लोगों पर हिंसक हमले किए.

रिपोर्ट के अनुसार, सिविल सोसायटी से जुड़े लोगों को चुप कराने और सरकार की आलोचना करने वालों पर चरमपंथ समेत राजनीति से प्रेरित अन्य आरोप लगाकर स्वतंत्र पत्रकारों को चुप कराने या उन्हें जेल भेजने की कोशिशें हुई हैं. इसके अलावा जम्मू और कश्मीर में अभिव्यक्ति की आज़ादी के हनन और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाई गई है.

हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान और यूक्रेन में सरकार ने मानवाधिकार की कोशिशों की अपना समर्थन दिया है.

2023 ह्यूमन राइट्स रिपोर्ट में 80 पन्ने भारत के बारे में हैं. रिपोर्ट के सारांश में सबसे पहले मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच बीते साल मई में हुई नस्लीय हिंसा का ज़िक्र किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान मानवाधिकरों के हनन के मामले देखे गए. बलात्कार, दुकानें और घर जलाने, पूजास्थलों को नष्ट करने के मामले नज़र आए. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मई की तीन तारीख से लेकर नवंबर 15 के बीच इस हिंसा में 175 लोगों की मौत हुई और 60 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए.

बीते साल सरकार या उसके एजेंटों के गैर-क़ानूनी हत्याओं की भी कई रिपोर्टें आई हैं. मीडिया रिपोर्टों में पुलिस या सुरक्षा बलों के हाथों हुई कई कथित मौतों को "एनकाउंटर में हुई हत्याएं" करार दिया था.

रिपोर्ट में ओडिशा में पुलिस कस्टडी में कथित तौर पर हुई धनेश्वर बेहेरा की हत्या, उत्तर प्रदेश में पुलिस कस्टडी में हुए समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता सांसद अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ अहमद की गोली मारकर हत्या, चेतन सिंह नाम के एक सुरक्षा अधिकारी के तीन मुसलमानों को नाम पूछकर मारने के मामले का ज़िक्र किया गया है.

वीडियो कैप्शन, दिल्ली: नमाज़ियों को लात मारने का मामला, अब तक क्या-क्या हुआ...

रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर के इलाक़ों से लोगों के ग़ायब होने के मामलों, राजस्थान में 21 साल की एक महिला के सामूहिक बलात्कार के मामले का, पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन की गिरफ्तारी के मामले, जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत 2019 में 800 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी, यूएपीए (ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम क़ानून) के इस्तेमाल को लेकर हो रही बहस का भी ज़िक्र है.

इसके अलावा 2019 से जम्मू और कश्मीर के कम से कम 35 पत्रकारों के ख़िलाफ़ पुलिस जांच, छापे, फर्जी मामले दर्ज किए गए. कई लोगों के आने-जाने पर भी पाबंदियां लगाई गई हैं.

रिपोर्ट में राजस्थान के भिवानी में मोहम्मद जुनैद और मोहम्मद नासिर की कथित तौर पर गोवंश की तस्करी के आरोप में पीट-पीटकर हत्या के मामले का भी ज़िक्र है.

रिपोर्ट के अनुसार "इस बात के भरोसेमंद सबूत हैं कि गोवंश लाने-ले जाने या उन्हें मारने के लिए विद्रोही समूहों ने मुसलमानों और दलितों की हत्या की."

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